दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।

हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ

Tuesday, April 22, 2008

एक अपील

एक अपील

दोस्तों

मेरी आप सब से प्रार्थना है कि "दाल रोटी चावल" पर विविध प्रकार के व्यंजन बनाने की विधी देते हुए पोस्ट लिखें।
वैसे तो नेट पर कई ऐसी साइटस है या ब्लोग्स है जहां विविध प्रकार के व्यंजन बनाने के बारे में बताया जाता है। इस चिठ्ठे को कुछ अलग रूप देने के लिए मैं चाहती हूँ की आप व्यंजन के बारे में तो बताएं ही उससे जुड़े किसी संस्मरण को भी अगर जोड़ दें तो बहुत अच्छा होगा। इससे हमें न सिर्फ़ भारत की विविध संस्कृति के बारे में जानने को मिल सकेगा बल्कि आप से और जुड़ने का मौका मिल सकेगा। हमें अपनी जिन्दगी में कुछ अंश तक शामिल होने की इजाजत देगें न?

एक उदाहरण देती हूँ, कुछ महीने पहले बम्बई में ब्लोगर्स मीट हुई थी जब समीर लाल जी आय थे। हम भी उस मीट में गये थे। सभी ब्लोगर्स उत्तर भारतीय थे। वहां शशी जी भी आये थे और साथ में सबके खाने के लिए "लिट्टी" लाए थे। सबने बड़े चाव से खायी। हम शशी जी से भी पहली बार मिल रहे थे और "लिट्टी" से भी जिन्दगी में पहली बार परिचित हो रहे थे।

ऐसी ही अपने देश की कई पाक विधाएं होगीं जो शायद आप आम तौर पर इस्तेमाल करती होगीं और आप को लगे इसके बारे में क्या लिखना पर वो हम जैसे दूर शहरों में बसे अपनी जड़ों से कटे लोगों के लिए एक अनूठी सौगात हो सकती है।
आज कल ज्यादातर नारियां नौकरी पर जाती हैं और नेचुरल है कि घर के कामों में जहां तक हो सके शॉर्टकट ढूढे जाते हैं, हम भी यही करते हैं , ऐसे में खास कर ऐसे व्यंजन जो बहुत लजीज तो होते है पर बहुत मेहनत मांगते है अक्सर नहीं बनाये जाते, ऐसे कितने ही व्यंजन होगें जो शायद अब सिर्फ़ याद भर बन कर रह गये हों, उन के बनाने की विधा बता कर आप पाक विधा का एक रिकॉर्ड बनाने में मदद कर सकते हैं जो भविष्य की धरोहर होगा। जैसे मुझे याद आता है बचपन में हम जब भी देहली जाते थे तो एक भुट्टा बेचने वाला साइकिल पर आता था, साइकिल के कैरियर में एक बक्सा होता था जिसमें मसालेदार रसा होती थी और उबले हुए भुट्टे उस रसा में डूबे होते थे।गरमागरम मसालेदार रसीली छ्ल्ली( जी भुट्टे को यही कहा जाता था) खाने में अश्रुग्रंथी, लारग्रंथी सब ओवरटाइम काम करती थी, और स्वाद आज तक याद है। लेकिन अब हमने सुना कि वहां ऐसे भुट्टे बेचने वाले नहीं आते। हमने घर पर बनाने की कौशिश की पर वो स्वाद नहीं आया। क्या आप में से किसी को याद है ये छ्ल्ली और कैसे बनायी जाती है।
भोजन से हर इंसान जुड़ा हुआ है, इस लिए हमारा आग्रह पुरुष और महिलाओं दोनों से है। आशा है आप जल्दी ही हमें अपनी पाक विधा से चमत्कृत कर देगें और हम भी आप से कुछ सीख सकेगें।

अनिता

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

अजी अपन तो सिर्फ़ खाना जानते है चटोरे जो ठहरे, बनाने की बात अपन से नई होती ;)

पर आईडिया जबरदस्त है आपका!