कोई व्यंजन विधि नहीं लाया हूं. आप लोगों के वास्ते हिन्दी के वरिष्ठ कवि श्री इब्बार रब्बी की एक कविता पेश है, जिसे पढ़कर मुंह के स्वादतंतु उत्तेजना की चरम अवस्था को प्राप्त होने लगते हैं और जब तक आप अरहर की दाल को रब्बी साहब की तरह नहीं खा लेते, आपका चित्त अशान्त रहेगा:
अरहर की दाल
कितनी स्वादिष्ट है
चावल के साथ खाओ
बासमती हो तो क्या कहना
भर कटोरी
थाली में उड़ेलो
थोड़ा गर्म घी छोड़ो
भुनी हुई प्याज़
लहसन का तड़का
इस दाल के सामने
क्या है पंचतारा व्यंजन
उंगली चाटो
चाकू चम्मच वाले
क्या समझें इसका स्वाद!
मैं गंगा में लहर पर लहर
खाता डूबता
झपक और लोरियां
हल्की-हल्की
एक के बाद एक थाप
नींद जैसे
नरम जल
वाह रे भोजन के आनन्द
अरहर की दाल
और बासमती
और उस पर तैरता थोड़ा सा घी!
(रचनातिथि: अट्ठारह जनवरी १९८२)
13 comments:
स्वादिष्ट बहुत है,
चावल के संग
जैसे नयी दुल्हनियां
दुल्हे के संग
स्वाद में मत जियादा खा लेना
खा लो तो
कब्ज और गैस
शिकायत किसी से
ना करना।
अरहर की दाल और चावल जिसने नहीं खाया उसने क्या खाया . इतेफाक से कई दिन से अरहर की दाल के विभिन्न पकने के तरीको पर लिखना चाहती थी पर नहीं लिख पायी और आज अपने इस कविता इस ब्लॉग को एक नई गरिमा दी . ब्लॉग पर लिखने के लिये थैंक्स . लिखते रहे मुझ उर्जा मिलती हैं पकाने की
वाह वाह अरहर की दाल पर भी कविता लिखी जा सकती है.
वाह, वाकई स्वादिष्ट कविता है, बहुत खूब!!
नई बानगी परोसी गई आज
"दाल चावल के ब्लोग पे "..
कविता लिखनेवाले और प्रेषित करनेवाले का भी शुक्रिया !
- लावण्या
भर कटोरी
थाली में उड़ेलो
थोड़ा गर्म घी छोड़ो
भुनी हुई प्याज़
लहसन का तड़का
" wah kmal kya poem hai daal pr, daal or bhee svadisht ho gye hai"
Regards
भर कटोरी
थाली में उड़ेलो
थोड़ा गर्म घी छोड़ो
भुनी हुई प्याज़
लहसन का तड़का
" wah kmal kya poem hai daal pr, daal or bhee svadisht ho gye hai"
Regards
अरहर की दाल और चावल की खुशबू तो यहाँ तक पहुँच गई है...बहुत स्वादु भी..
बढ़िया लजीज कविता लगी ...क्यूंकि यह मुझे भी बहुत पसंद है .शुक्रिया इसको नए अंदाज में पेश करने के लिए
isse swadisht kavita hamne pahle nahi dekhi.....mast hai.
मुहं में पानी ला देने वाली...कविता...बहुत स्वाद...
नीरज
क्या बात है अरहर के दाल की !
अरहर की दाल की तूती तो सारे भारत में बजती है। बढ़िया कवितामयी रेसिपी
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