ये रेसिपी डॉ मंजुलता जी ने हस्तलिखित दी हैं और लेखिका की मै बेटी हूँ ।
क्लिक करे और बड़ा करके आराम से पढ़ के , प्रिंट निकाल कर , बनाए । तस्वीर नीचे हैं मेरी माता श्री की किचेन की क्योकि ये विधि भी उनकी ही हैं । हम तो खाते हैं पर इस बार खाने से पहले फोटो ले ली । सबसे अच्छी बात हैं की अरबी के पत्ते भी घर के किचेन गार्डन से ही हैं । और अरबी को लखनऊ मे घुइयाँ कहते हैं ओअर दिल्ली के सब्जी वाले इस नाम से नितांत अपरचित हैं ।
6 comments:
Rachana ji,
barsaat ke mossam mai etni cruchi parnchi recipy pesh kerne ke liye danyawaad.
isme heeng aslee waali dale to oor b testy ho jaenge PATTOR
Manvinder
bihar me isey ARUAAaur KACHUU kahtey hain..post pasand aayi..
जम्मू में बहुत खाया करते थे क्यूंकि घर में लगे हुए थे ...याद दिला दी आपने ..बरसात भी है बनाने पड़ेंगे :)
रचना जी,
गुजरात मेँ इन पत्तोँ का हरा रँग ओपर दीखे इस तरह मसाले पडे बेसन को अँदर, तहोँ पे लगाया जाता है
और अरबी के पत्तोँ के इस व्यँजन का नाम "पाँतरा " है -
भाँप से सीजे हुए पाँतरे,
पाचन मेँ हल्के होते हैँ
पर उन्हेँ बघार देने से तेल के अनुपात से
वे थोडे भारी हो जाते हैँ
पर तब भी लगते हैँ बडे स्वाद !!
स स्नेह,
- लावण्या
हमें भी पातरा की याद आ गयी
यह मुझे बहुत पसन्द है, पर बनाती नही हाथ मे खुजली होने लगती है। :)
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