दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।
हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ
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Sunday, April 19, 2009
सहयोग दे ताकि साँझा चूल्हा जलता रहे ।
दाल रोटी चावल ब्लॉग के लिये विधियाँ आमन्त्रित हैं । इस ब्लॉग पर रेसिपी भेजे अलग अलग प्रान्तों कि ताकि कुछ नयी पुरानी रेसिपी का एक अच्छा ब्लॉग बन सके । सहयोग दे ताकि साँझा चूल्हा जलता रहे ।
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2 comments:
सॉंझा चूल्हा जलाए रखने की कोशिश काबिले तारीफ है।
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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
first time here....
your food blog is quite interesting and i loved the concept of sanjha chulha ...
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