दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।

हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ

Friday, July 9, 2010

बारिश की इंतज़ार में




अरबी के पत्‍तों पर बेसन का लेप
थोड़ी देर स्‍टीम बाथ फिर गर्मागर्म तेल में फ्राई, धनिए मिर्ची की चटनी के साथ
बारिश का आनंद

(बस बारिश्‍ा धोखा दे गई, पतौड़ तो अच्‍छे थे)
Posted by Picasa

2 comments:

Anonymous said...

waah
waese patodae bnaanaa itna asan nahin haen !!

निर्मला कपिला said...

मै तो खूब बनाती और खाते हूँ। आभार्