दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।

हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ

Thursday, July 17, 2008

कचूमर

कच्ची अमिया एक
एक छोटी चम्मच सरसों का तैल
नमक , पीसी लाल मिर्च स्वाद अनुसार
एक चुटकी पीसी हल्दी
अमिया को छील ले । अब गुठली अलग करते हुए चारो तरफ़ से टुकडे काट ले । अब इन टुकडो को चकोर छोटे छोटे टुकडो मे काट ले , जितने छोटे आप कर सके । एक कटोरी मे ये टुकडे डाले ऊपर से नमक , हल्दी और पीसी लाल मिर्च डाले फिर सरसों का तैल डाल कर खूब अच्छी तरह मिला ले । बस कचूमर तैयार । पापा को ये बहुत अच्छा लगता था , खिचडी , रोटी , अरहर कि दाल सबके साथ वो इस को बहुत रूचि से खाते थे और बनाते भी ख़ुद ही थे । कुछ यादे वक्त के साथ भी धूमिल नहीं होती

4 comments:

Anita kumar said...

हमें भी ये बहुत अच्छा लगता है।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत सिम्पल और आपकी यादों में भी अब तक ताजा है, ये तो ट्राई करनी ही पड़ेगी

रंजू भाटिया said...

सच में यह बहुत अच्छा लगता है ..अरहर की दाल के साथ तो बेहद अच्छा

Anonymous said...

हमारे यहां इस कचूमर में बारीक कटा प्याज़ और हो सके तो कुछ पत्ती पुदीना भी डाला जाता है,और गर्मियों ,खासकर लू के दिनों में दोपहर के खाने में इसे ज़रूर शामिल किया जाता है क्यूंकि कच्ची अमिया और प्याज़ दोनों ही शीतलता वर्धक होने के कारण लू के असर को कम करते हैं.और हां हमारे यहां कोटा में इसे चुर्री कहते हैं.