दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।

हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ

Saturday, November 22, 2008

दाल रोटी चावल नव भारत टाईम्स मे भी पहुँच गयी हैं ।

दाल रोटी चावल नव भारत टाईम्स मे भी पहुँच गयी हैं । आज लिंक देख रही थी तो इस लिंक पर http://navbharattimes.indiatimes.com/rssarticleshow/3535044.cms

अनुराग अन्वेषी जी ने लिखा हैं

चलिए आज चलते हैं एक ऐसी ही रसोई में, जहां पुरुष भी खाना पकाते मिलेंगे। सिर्फ मिलेंगे ही नहीं, वह आपको सिखाएंगे भी। इस रसोई का नाम है daalrotichaawal।blogspot.com । फिलहाल 26 रसोइये हैं यहां। निजी रसोई में सीखी रेसेपी बताने को आतुर। तो एक दफे यहां घूम आएं आप और फिर हमें लिख कर आमंत्रित करें कि यहां से सीखी चीज आप बना कर किस दिन खिला रहे हैं।

लिंक कुछ देर से मिला तो सभी रसोई के कर्णधारो को बधाई और अनुराग अन्वेषी जी को धन्यवाद .

8 comments:

संगीता पुरी said...

बधाई हो आपलोगों को।

ghughutibasuti said...

बधाई ! परन्तु यदि यह पुरुषों के खाना बनाने के कारण लिखा गया तो क्या कहें ?
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी का धन्यवाद जो रसोई की महत्ता पहचानते हैँ!
नवभारत टाइम्स के जरीये और कई पाठक जुडोँगेँ ..
- लावण्या

Keshav Dayal said...

Bahut bahut badhaayee karnadhaaron evam sootradhaaron ko.

mehek said...

badhai ho

विधुल्लता said...

haardik badhai.

Anonymous said...

घुघूती जी, आपकी बात सही है.

पुरुषों का खाना बनाना ही इतनी बड़ी स्टोरी थी तो दुनिया भर के सारे होटल, रेस्तौरेंट और ढाबों की रसोई पर ख़बर छापनी थी, एक ब्लॉग ही क्यों? या फ़िर इंटरनेट पर मौजूद पुरुषों का रसोई तैयार करना अजूबा है!

Waterfox said...

नया रूप रंग और अब नयी पहचान :)
सबको बधाई!