अनिता जी ,
आप ने गुजराती कढी के बारे मेँ पूछा है ~~
रसोई बनाने मेँ एक तो सामग्री क्या क्या होँ वो सब ध्यान देने योग्य होता है, दूसरी खास बात है बनाने की विधि !
विधि - और उससे जुडे कुछ छोटे छोटे नुस्खे या " राज़ " जो हर प्राँत या कौम की डीश याने बानगी को कुछ अलग सा बनाते हैँ तो पहले सुनिये गुजराती कढी की विधि
गुजराती कढी और दाल दोनोँ ही, यु.पी स्टाइल की रेसीपी से ज्यादा पतली होतीँ हैँ और गुजराती कढी मेँ ये सारी सामग्री अवश्य डालेँ .
सामग्री : कढी पत्ता, हरा धनिया, जीरे , लौँग ,दालचीनी का एक बडा तुकडा,हरी मीर्च, पीली साबत मेथी के दाने, अदरक,हीँग ये सभी " वघार " माने छौँकमेँ डाले जाते हैँ
- हलदी कई लोग डालते हैँ तो कई नापसँद करते हैँ और कढी , सुफेद जैसी ही रखते हैँ... और कढी के लिये छाछ के साथ, २ चम्मच बेसन का आटा, एक बडी गुड की डली , ( कई लोग शक्कर पसँद करते हैँ ) नमक मिला कर, कढी को गेस पे रखते हैँ छौँक सबसे आखिर मेँ जब कढी उबलने लगे और ऊपर आने लगे तब डाल के, बस गेस बँद कर देते हैँ -
यु.पी की कढी गाढी करने के लिये उसे खूब उबालते हैँ और कढने देते हैँ जब कि गुजराती कढी को १ बार उफान आने के बाद, बँद कर देते हैँ क्यूँकि, उबालने से कढी खट्टी होती जाती है और, गुजराती लोग खट्टी, मीठी का कोम्बीनेशन पसँद करते हैँ ;-)
दूसरी पते की बात ये भी है कि किस व्यँजन के साथ क्या क्या पकाया जाये कि जिससे पूरा भोजन सुचारु व स्वादिष्ट बने !
तो गुजराती कढी के साथ वाले कोम्बीनेशन के व्यँजन अक्सर ये होते हैँ : ~~~
१) कढी / वेजीटेबल पुलाव, पुरी, खीर, फरसाण ( ढोकला, पाँतरा, भजिया , मुढीया ये कुछ भी हो सकता है )
२) कढी / छिलके वाली मूँग दाल की या अरहर या तुवर दाल की खिचडी, पापड, अचार,कचूमर,( सलाड ),आलु की मीठे रसेवाली सब्जी या सूखे +आलु प्याज की सब्जी या आलु + बैँगन की सब्जी ( भरे हुए ) या रसेदार !
३ ) आम रस के साथ खास कढी बनती है जिसे "फजेता " कहते हैँ सारी चीजेँ कढी के जैसी ही लीजिये सिर्फ पानी मिलाने के स्थान पर आम को घोलने के समय गुटली और छिलकोँ को पानी मेँबचाते हैँ और ये आम का पानी कढी मेँ मिला देते हैँ जिसमेँ Dry Ginger powder / सूखा सौँठ भी खास तौर पे मिलाते हैँ - और ये आम के रसेवाली गुजराती कढी को आम रस छक्क कर पी लेने के बाद, उसके पाचन के लिये सबसे अँत मेँ पिया जाता है और वो भी गरम गरम ! :) आम रस के साथ अकसर, कडुवी चीज जैसे करेले सूखे, या "वाल की दाल सूखी " और सुफेद पतला ढोकला जिसपे लाल मिर्च, काली मिर्च छिडकते हैँ वह और चावल का पापड जिसे खीचिया कहते हैँ और छेडा स्टोर मेँ वो मिल जाता है उसे बनाते हैँ --
ये सारे व्यँजन मैँने ससुराल आकर ही खाये, जहाँ उदयपुर के महाराज = रसोइये हुआ करते थे . मेरे पीहर मेँ अम्मा पापा जी की पसँद का यु.पी. स्टाइल का भोजन बनातीँ थीँ और अम्मा का परिवार सुरत से है जो बम्बई २०० सालोँ से बस गया था सो, सुरती रीति से हरी सब्जियाँ भी बहुत बनतीँ थीँ जैसे ऊँधिया, वालोड, पापडी, गुवार की फली की सब्जियाँ चोलाई, मेथी के हरे पत्तोँ की भाजीयाँ भी खूब खाईँ हैँ और बम्बई शहर मेँ,रहते हुए अन्य कौमोँ की रीत से बनी कई डीशस - महाराष्ट्रीयन, पारसी, मद्रासी,पँजाबी खाना भी हमारे घर अक्सर बनता था - उसकी चर्चा भी आगे करुँगी
और नर्म मुलायम रोटी बनाने के लिये,
आधा दूध ( मलाई बिना ) और आधे पानी से आटा गूँधिये और खूब मलिये --- रोटीयाँ भी महीन बेलनी पडती हैँ गर गुजरातीयोँ जैसी खानी होँ तो :-)
सिगडी पे रोटीयाँ बेहद अच्छी बनतीँ हैँ :)
और हाँ, आटे मेँ तेल का भाग भी १, २ चम्मच, सूखे आटे मेँ मिलाया जाये तब रोटीयाँ नर्म और मुलायम रहतीँ हैँ जिसे
" मोण डालना "कहा जाता है गुजरात मेँ ! अब केलेरीज़ तो बढतीँ ही हैँ पर स्वाद और नर्म रोटी चाहीये तो ये भी करना ही होता है - सुस्वाद भोजन को खायेँ, पचायेँ और हर रोज सैर भी करेँ !
आशा है, आप को ये सब विधि कुछ, कुछ समझा पाई हूँ ..
कोई सवाल और होँ तो अवश्य पूछियेगा --
-- लावण्या
6 comments:
पूछूँगा- एक दो दिन में जब बनाऊँगा और न बन पाई तब..तब तक के लिये आभार.
वाह ! ये गुजरती कढ़ी तो बनानी पड़ेगी।
लावण्या जी बहुत ही मजा आया आप की पोस्ट पढ़ कर्। एक ही पोस्ट में इतने सारे व्यंजन और टिप्स दे दिए आप ने , और आप का पोस्त लिखने का अंदाज भी हमें पसंद आया, बहुत अपनापन झलक रहा है। आप ने गुजराती कड़ी के साथ जितने भी कोम्बिनेशन्स बताए हैं अब उनकी रेसिपी का इंतजार रहेगा। खास कर अब हमारी अगली फ़र्माइश है उंधियो सिखाइए न
यह हुई न थाली भरी भरी लावण्या जी ..इतने सरे टिप्स और मजेदार व्यंजन..मेरा एक सवाल है कि जब भी मैं साबुत भिंडी बनाती हूँ वह बहुत क्रिस्पी नही बनती ..क्यों ? उसको कम तेल में कैसे ज्यादा क्रिस्पी बनाया जा सकता है ...
समीर भाई ,
सच ? आप भी खाना बना लेते हैँ क्या ? साधना भाभी जी से पूछना पडेगा :)
अवश्य बाअयेँ कि कैसी रही
- लावण्या
ममता जी,
आपका आभार -
जरुर बनायेँ और बतायेँ :)
अनिता जी ,
अच्छी बात है,
अगली बार "उँधियो" ही सही !!
आपको पोस्ट पसँद आयी ,
मुझे खुशी है :-)
रँजू जी,
नोन स्टीक बर्तन मेँ ही कम तेल मेँ भीँडी को देर तक पकाने से
शायद करारी भीँडी बन सकती है
वैसे भीँडी की सब्जी
ज्यादह तेल मेँ ही बनती है --
ऐसा मेरा अनुभव है
आपका भी आभार :)
-- लावण्या
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