पालक कोफ्ता क्यों ? दरअसल हम रात डेढ़ बजे घर पहुंचते हैं । इस बीच सभी लोग खाना खा चुके होते हैं। बार बार बर्तन में चम्मच चलाते रहने से गोभी और पकौड़ेवाली कढ़ी जैसे आइटम हमारी बारी तक बर्बाद हो जाते है क्योंकि उनमें टूट फूट हो जाती है। पालक कोफ्ता नहीं टूटता।कुछ ग़लती रह गई हो तो माफी दीजिएगा, हड़काइएगा नहीं।
सारी सामग्री अपने अंदाज़ से लें
करीब एक पाव पालक को बारीक बारीक काट लें। बेसन लें और पालक में मिलाएं। अजवायन, जीरा, खड़ा धनिया, हींग और नमक मिलाएं । कोशिश करें कि पालक में पानी मिलाने की ज़रूर न पड़े और उसकी नमी से ही बेसन का पकोड़ी लायक पेस्ट बन जाए। इसके पकोड़े तल लिए जाएं। ध्यान रहे इतना अधिक न तलें कि रंग हरा से सुनहरा हो जाए :) अब ताज़े दही में बेसन और पानी डाल कर कढ़ी का घोल तैयार कर लें। आंच पर चढ़ा दें। ज़ायके के मुताबिक नमक डालें। मन करे तो लहसुन अदरक पेस्ट भी उबलते समय डाला जा सकता है। अच्छी तरह कढ़ने के बाद उतारने से पहले हींग पाऊडर डालें।
छोटी फ्राईपैन में घी या तेल लें। खड़ी लाल मिर्च डालें। पंचफोळन यानी राई, जीरा, मेथीदाना, कलौंजी और कालीमिर्च का तड़का लगाएं। थोड़ा लाल मिर्च पाऊडर डालें और इस बघार को कढ़ी में डाल दें।
बस , अब तैयारशुदा पालक कोफ्ते कढ़ी में डालें और कुछ देर गर्म करें। फिर आंच से उतार कर पांच मिनट रूकें और परोसगारी के लिए तैयार हो जाएं। कढ़ी में तैरते हरे हरे कोफ्ते देखकर हमारा दिल तो बाग बाग हो गया था।
टिप- इस डिश के साथ या तो चावल खाएं वर्ना मोटे आटे की रोटियां ही अच्छी लगेंगी जैसे मक्का, ज्वार या बाजरा। हमने इनमें से कुछ नहीं खाया बल्कि गेहूं के आटे में थोड़ा मक्के का आटा मिलाकर रोटियां बनाई जो देर रात ठंडी ठंडी खाईं। इस डिश की खासियत है कोफ्ते टूटे नहीं और कढ़ी में अनावश्यक गाढ़ापन भी नहीं आया ।
दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर। आज नारी बहुत आगे जा रही हैं सब विधाओं मे पर इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो अपना राज पाट त्याग कर कुछ हासिल करना चाहती हैं। रसोई की मिलकियत पर से हम अपना हक़ तो नहीं छोडेगे पर इस राज पाट का कुछ हिस्सा पुरुषो ने होटल और कुछ घरो मे भी ले लिया हैं।
हम जहाँ जहाँ ये वहाँ वहाँ
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Thursday, July 3, 2008
लज़ीज़ पालक कोफ्ता कढ़ी
खाना बनाना हमारे लिए कभी ज़हमत का काम नहीं रहा। अलबत्ता दाल रोटी चावल के लिए रेसिपी लिखना ज़रूर बोझ लग रहा था। वजह दो थीं एक तो यह कि शब्दों के सफरपर करीब करीब रोज़ लिखना हमारी मजबूरी है। दूसरी, रेसिपी तो ढेरों गिनाई जा सकती हैं मगर प्रामाणिकता के लिए तस्वीरें ज़रूरी है। सो , जब तक हम रसोई में नहीं घुसेंगे , रेसिपी तैयार कैसे होगी, तस्वीरें कैसे खींची जाएंगी। बस , यही अड़चन थी। मगर अब जब अनिताजी/रचनाजी ने अल्टीमेटम दे ही दिया है तो श्रीगणेश कर ही डालते हैं। जिस डिश को हमने दाल रोटी चावल के लिए चुना है वह है पालक कोफ्ता कढ़ी । जी हां, ये विशुद्ध हमारी विधि है, आनन-फानन में इसका आइडिया दिमाग़ में आया और बड़े प्रेम से श्रीमती जी ने इसे तैयार भी कर दिया सो इसका क्रेडिट हम स्मिता को ही देना चाहेंगे। तो लीजिए पेश है पालक कोफ्ता कढ़ी।
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11 comments:
काश, रचना जी और अनिता जी ने आपको पहले हड़काया होता तो कब का खा चुके होते पालक कोफ्ता कढ़ी.
बहुत आभार-आपका और भाभी जी का.
रचना जी और अनिता जी-और हड़काईये इन्हें. हा हा!!!
बहुत बढिया रेसीपी है पालक के कोफ्ते पहले बनाये नहीँ कभी कढी के लिये
अब जरुर बनायेँगे -
हेल्ल्लो स्मिता भाभी जी :)
- शुक्रिया - अजित भाई -
-लावण्या
अब तारीफ़ अजीत की हो या स्मिता की या कढ़ी की ? बस वाह वाह और धन्यवाद ही कह सकते हैं . और ये "हड़काईये" कह कर समीर जो आप " भाद्काईए " की हवा ना बहाए , आक कल गर्मी बहुत हैं , और ब्लॉगजगत मे ही कुछ ठडक हैं . सो कनाडा से कुछ शीतल बयार लाये .
स्मिता और अजीत का शुक्रिया , कृपा कर लिखते रहे
wah lajiz lajiz palak kadika maza aa gayabahut shukran
समीरभाई, रचनाजी, लावण्याजी और महकजी
को बहुत बहुत आभार कि आपको ये डिश पसंद आई। वैसे इसका श्रेय अजित को ही है।
-स्मिता
"जी हां, ये विशुद्ध हमारी विधि है, आनन-फानन में इसका आइडिया दिमाग़ में आया और बड़े प्रेम से श्रीमती जी ने इसे तैयार भी कर दिया सो इसका क्रेडिट हम स्मिता को ही देना चाहेंगे। "
आइडिया आप का और मेहनत भाभी जी की, जनाब जरा कड़छी खुद हाथ में पकड़िये, अब अगली रेसिपी अपने हाथ से बनाई हुई बताइएगा, और बोनस के रूप में भाभी जी के हाथ का बना खाना खायेगे, बताइए तो भाभी जी क्या खिलायेगीं आप?
रेसिपी एकदम नयी है, कभी सुनी भी नहीं पालक के कोफ़्ते…वाह आज ही ट्राई करेगें। हमारी प्राथना का मान रखने का धन्यवाद्।
अगली बार आप की फ़ोटो किचन में खीचीं हुई…।:)
आज ही मौका मिला और ब्लॉग रसोई का रुख किया. खूब स्वादिष्ट कढ़ी लग रही है.. स्मिता और अजित जी को धन्यवाद बनाने के बाद ही करेंगे :)
हड़काने का खूब असर हुआ है .:) .नई डिश मिली खाने को पकाने को ...शुक्रिया
अहा,रचना की डांट का असर इतना स्वादिष्ट होगा,सोचा ना था.अजितभाई और स्मिताजी का इस अनोखी किन्तु दिलचस्प कढी के लिये धन्यवाद.इतवार को लन्च मे हमारे यहां कद्ढी बनती है,सो इस बार यही बनेगी.
"अहा,रचना की डांट का असर " not fair illa !!!!!!!!!! yae mujeh badnam karney kii saajish haen anita bhi ismae baaraber ki hisaedaar haen aur blog owner mae hun par sutrdhar woh hee haen
कोई फिक्र नहीं । जल्दी ही अगली डिश लेकर हाजिर होते हैं।
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